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शत पञ्चस्काण नाष्य अर्थसहित. ली (होर के) होय, तेमां कोइएक प्राणीने ३ हलोके एज नवमां तुरत फल थाय, अने कोशए कने परलोके एटले परनवे फल थाय, तिहां (s हलोए के) आ लोकाश्रयी तो (धम्मिलाई के०) धम्मिलादिकनो दृष्टांत वसुदेवहिंमीग्रंथी जाणवो, एटले धम्मिले उत्तरगुण पचख्खाण चारित्ररूप उ महीना पर्यंत आयंबिल प्रमुख तप कर्यु, तेथी तेहीज नवे घसी लब्धि नपनी, शरी रना मल मूत्र सर्व औषधरुप थयां, राजसंपदा जोगवी मोझपदवी पाम्यो, अने (परलोए के) परलोकनेविषे एटले परनवमां ( दामनगमाइ के) दामनकादि प्रमुखना एटले दामनक ना मे व्यवहारीयाना बेटानो दृष्टांत श्रीआवश्यक नियुक्तिप्रमुख ग्रंथथकी जावो. एटले पचरूखा ण फलनुं नवमुं धार . उत्तर बोल नेQ श्रया ॥ ७॥ ___ एमां आ जव आश्रयी पञ्चख्खागना फल संबंधी धाम्मलकुमारादिकना दृष्टांत कहा , तेनी कथा संक्षेपथी लखवी जोइये, परंतु १