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________________ २६ पञ्चस्काण नाष्य अर्थसहित. (तु के) वली पण पञ्चरकाणनी (सुचि के०) शुक्षि प्रकारांतरे बीजी ले ते कहे . प्रथम सम्यग्दर्शनी ज्ञवंतना मुखश्री पञ्चस्का ण करवू, अने निःशंकता आचारयुक्त शुः सद्द हणा पूर्वक करवं, एटल करला पञ्चरकाण नपर शुनाव होय ते (सदहणा के) सदहणा शुदि जाणवी, बीजी पचरकाणने इच्य, क्षेत्र, काल अने नावथी जाणीने तथा मूल नत्तरगुणे नेद नंगादिके जाणीने वली जाणन पासे पच्च स्काण करे, ते (जागण के) जाणवापणं ए बीजो अधिकार शुक्ष जारांवो. त्रीजी सुझाना दिक आचारसंयुक्त अतिचार प्रविधि रहित गुरु नी पासे वांदणां देवा प्रमुख विनय साचवीने प चरकाण करवु, ते (विणय के० ) विनयशुद्धि जागवी. चोथी गुर्वादिक कहेता होय ते प्रत्ये आ गारादिक, पोते नांखवू, एटले गुरु पञ्चरकाण करावे, अने पाउलथी पोते आगार नच्चरे, ते (अ गुनासण के) अनुनाषणशुहि जाणवी. पांच मी निराशंसपणे रूमी रीते पाले, जो विषम जय
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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