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________________ २७ पञ्चरकाण नाष्यअर्थसहित. कहे, चोयो (खंग के) खांमनी सर्वजाति, पांचमो (अधकढिय इकुरसो के ) अ: काढे लो क्षु एटले सेलकी तेनो रस, ए पांच नीवि याता गोलना जाणवा. एना पण नेदांतर घणा थाय ३ ॥३॥ हवे कमाविगइना पांच नीवियाता कहे जे. पूरित्र तव पूआ बिय, पूत्र तन्नेहतु रिय घाणाई॥ गुलहाणी जल लप्पसि, य पंचमो पूत्तिकय पून ॥ ३५॥ ___ अर्थः-(पूरितवपूआ के ) पूस्यो एटले ढां क्यो सर्व तावमो ने जेणे एवा पूडला नपर (वि अपय के)बीजोपुमलो तली काढीये, ते बीजो पूमलो नीवीयातो जाणवो, एटले घृतादिके पूरित एवो जे तवो तेने विषे एक पूपें करी पूस्यो सम स्त तवो तेहमां एक वार तली, वली तेहिज पूपि कादिक पर्पटकादिके अपूरित स्नेह एवा तवामां बीजी वार तथा त्रीजी वार केपवीने तली काढीये जे पक्वान ते निवीयातुं जाणवं.
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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