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पञ्चस्काण नाष्य अर्थसहित. २५१ अर्थः-प्रथम (घय के ) घृत जाणवू, बीजी (ददिया के) दधि जाणवू, ए बे विगश्ना एक (नहिविणा के) चंटमीना दूध विना बाकी चार चार नेद जाणवा. केम के नंटमीनुं दूध जमाय नहीं, भाटे ते विना बाकी चार, एक गा यना दही, घी, बीजु नेषना दहींनुं घी, त्रीजुं गलीना दहींनुं घी, अने चोथु गामरना दहीघी, ए चार नेद घृतना जाणवा, तथा दहींना पण एज चार नेद. एक गायना दूधनुं दहीं, बी जुं नेंषना दूधनुं दही, त्रीजुं गलोना दूधनुं दही अने चोयूं गाझरना दूधनुं दही, ए चार दहींना नंद विगइरूप जागवा.
हवे तेल विगयना चार नेद कहे . एक (तिल के) तिलन तेल, बीजं (सरिसव के) सरशवनुं तेल, त्रीजुं (अयसि के) अलसीनुं नेल अने चोथु (लट्ट के ) काबरी कसुंबा धा न्य खसखसना दाणानुं तेल, ए (तिल्ल के) तेल विगश्ना (चक के) चार नेद विगश्या ता रूप जाणवा, अने बीजा एरंमीयानां फूला,