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श्व पञ्चस्काण नाष्य अर्थसहित. ते विगइ कहीये, ते विगइ दश नेदे ले. तेमांथी चार विग तो साधु अने श्रावकबेहुने अन्नदयज .एटले नक्षण करवा योग्य नथी, अने उ नक्ष्य विगइ साधु अने श्रावक बेहुने लक्ष्य करवा यो ग्य . माटे एने लक्ष्य विगइ कहीये,तेना उत्तर नेदे बार थाय ते कहे .
प्रथम अध विगइ (पण के) पांच नेदे , बीजी दधि वियर (चन के) चार न्नेदेने, त्री जी घृतविगइ (चन के) चार नेदे , चोथी तेल विगइ (चन के) चार नेदे , पांचमी गोळविगइ (5के) बेनेदे, ही पक्वान्न विगइ (उविह के) विविध एटले बेनेद , ए (डाइ के) उग्धादिक (उ के०) (नरक के) लक्षण करवा योग्य (विग के०) विगइ , तेना सर्व मली नत्तरन्नेद (इगवीसं के) एकवीश थाय डे.
हवे चार अन्नक्ष्य विगाना नत्तर नेद कहे. प्रथम मधु विग (ति के)त्रण देने, बीजी भदिरा विग (5 के) बेनेदे , त्रीजी मांस विगइ (ति के०) त्रण नेदे , चोथी माखणवि