SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चरकाल जाष्य अर्थसहित. २३७ थावे तेवारे पूर्वनी पेठे श्र जम्यो थको होय तो पण पचखाण पूर्ण थाय तिहां सुधी एमज बेश रहे, अने काल पूरो थया पढी जमे ||२४|| साहुवयण नग्घामा, पोरिसि तपु सु तया समाहित्ति | संघाइ कऊ महत्तर, | गह बंदा सागारी ॥ २५ ॥ अर्थः- पांचमुं (नग्धामापोरिसि के० ) नग्धाम पोरिसी एवो ( साहुवयल के० ) साधुनुं वचन एटले बहुपमिसा पोरिसि एवं सांजलीने जो अपूर्ण पचखाणे जमे तो पण पोरिसी जंग न थाय, पठी कोकना कहेवा उपरथी जाणवामां श्रावे के इजी लगा पोरिसीनो काल पूर्ण थयो नथी, तेवारे पूर्वोक्त रीते मुक्त रहे, अने पोरि सीनो काल पूर्ण थापी जमे ए साहुवय सं नामे श्रागार जाणवो. a ( त के० ) शरीर तेनुं (सुत्रया के० ) स्वस्थता जे निराबाध पणुं तेने ( समाहि के० ) समाधि ( इति के०) एम कहीये, एटला माटे ए
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy