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________________ २३५ पञ्चरकाण नाष्यअर्थसहित. __अर्थः-जे (विस्तरणं के० ) विस्मरण पक्ष जाय ते (अगालोगो के० ) अनाजोगयी थाय, एटले पञ्चरकाणनो नुपयोग अनान्नोग थकी वी सरी जाय, तेवारें अजाणपणे कांश मुखमां प्र केप करे तो तेथी पञ्चरका नंग न थाय. ए प्र थम प्रणान्नोगे श्रागार कह्यो, एनी साथे अन्न शब्द जोमीये तेवारे अनवणानोगेणं एवं नाम थाय, माटे तेनुं कारण समजवाने नीचे अर्थ ल खीये बैये, अनवणालोगेणं एटले अन्यत्र अने अनानोगात् तिहां अन्यत्र एटले जे आगार कह्यां होय ते श्रागार वर्जीने वीजा सर्वत्र स्थानके प चस्काण पालवानी यत्ना राखवी. अन्नब ए पद सर्वे आगारें जोमवं, एम जाणवू तथा अनानो गात् एटले वोसरवाथकी अर्थात् पचरकाणनो न पयोग बीसरते अजाणतां कांश मुखमां प्रक्षेप कराइ जाय, पी पचरकाण साजरी आवे, तेवारे तरत मुखथकी त्याग करे, तेथी पचरकाण नंग प्राय नहीं, अथवा अजाणे मुखयकी हेठे नत रघु पी कालांतरे अथवा तुरत स्मरणमां आवे
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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