________________
पञ्चरकाण नाष्य अर्थसहित. ३१ निमित्तेज कहे .
उछ महु मद्य तिलं, चनरो दव विगइ चनर पिंमदवा ॥ घय गुल दहियं निसियं, मकण पकन्न दो पिंमा ॥३॥
अर्थः-एक (5६ के) उग्ध, बीजो (महु के) मधु त्रीजो (मद्य के) मद्य एटले मदि रा अने चोथो (तिलं के०)तैल ए (चउरो के०) चार ( दवविगइ के०)व्य विगय ने ए चार ते ढीलं विगय होय रस रूप होय, माटे एने रसवि गय कहीये, अने एक (घय के) घृत, बीजो (गु लके) गोल,त्रीजो ( दहियं के) दधि एटले दही अने चोयो (पिसियं के०)पिशित ते मांस ए (चनर के०) चार विगय जेते (पिंदवा के) पिंमध्यरूप रसरूप जाणवा. ए चार पिंक होय एनुं व्य को वेला य होय, तथा को वेला पिंक रूप थीणो पिंम होय. तथा एक (म ख्खण के०) माखण, बीजो (पक्कन के०)प क्वान्न ए (दो के ) बे कमाविगय जाणवां. ते स्वन्नावें करीने (पिंमा के) पिंम रूप होय क