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पचरकाण नाष्य अर्थसहित. ए स्थानक जे बिगर, नीवी अने आयंबिलनुं तथा एकासम, बियासण अने एकलठाणानुं ए बेनांग पञ्चरकालोने विषे पृथम् पृथग पञ्चरकाणे (सूरुग्ग या के०) सूरे नग्गए विगश्न पत्रकार इत्या दिक पाठ (नपिहु के०) वारंवार न कहेवो, ए टले प्रथम जे पञ्चरकाण मांमे, तिहां सूरे नग्गए कहेवो, परंतु पञ्चरकाण पञ्चरकाण प्रत्ये न कहेवो, तेमज (वोसिरई के०) वोसिर तथा वोसिरा मि ए पाठ पण अंतने विषे एक वार कहीये, पण वारं चार न कहीयें ए (करण विदीन के) करवानो विधि एटले पूर्वाचार्य परंपरायें एमज कहेता पाव्या ले करवानो एहज विधि . माटे महोटा पुरुष पण (ननन के) नथीनणता. (जहा के०) जेम (श्रावसीयाई के) आव स्सियाए ए पाठ (विपदे के०) बोजा वांदणा ने विषे कहेता नथी, ए पण पूर्वाचार्यनी परंपरा ने तेम इहां पण जाणी लेबु । ए॥
तह तिविह पञ्चकाणे, ननंति अ पाणग च आगारा ॥ ऽविहाहारे अचि