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________________ १एर पञ्चरकाण नाष्य अर्थात हित. अहिरुक्त एटले बीजी वारनां अण नवस्यां अर्या तू एकवार कयां तेनां ते फरी जुदां जुदा पजरका णमां आवे, ते न लेवां एवा (वीसगार के) बावीश आगारनुं क्षर कहेशे, पांचU ( दस विग ई के०) दश विकृति एटले दश विगयनी संख्या नुं हार कहेशे, हुं (तिसविगगय के) त्रीश विकृतिगत एटले उ मूल विगयना त्रीश निवीया ता थाय तेनी संख्या- हार कहेशे, सातमुं एक मूल गुण पञ्चरकाण तथा बोजु नत्तरगुण पञ्चरका ण एम (हनंगा के) बे प्रकारना नांगा प चरकाणना थाय, तेनुं हार कहेशे. आग्मुं पञ्च कानी (उ सुधि के) शुहिनुं स्वरूप नि श्वेथी, कहे तेनुं हार कहेशे. नवमुं पञ्चरकाण कस्यायी इहलोक तथा परलोक मली बे ठेकासे ( फलं के०) फल थाय तेनुं हार कहेशे॥१॥ ए मूल नवज्ञारनां नाम कह्यां. एनां उत्तरहार आंही विवस्यां नथी, पण ग्रंथांतरे नेवू कह्यां , अने अहीं पण शरवालो आपता नेवू पाय ठे, ते आगल विस्तारे कहेशे.
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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