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________________ १७३ गुरुवंदन जाय अर्थसहित. हवे स्थानकमां गुरु वचन होय तेनुं वीशमुं हार कहे बे. बंदेणुकाणामि, तहत्ति तुषंपि वटए एवं | हम विखामेमि तुमं, वयशाई वं दहस्स ॥ ३४ ॥ अर्थः-जिहां इवामि खमासमणो वंदिनं जा वणिजाए निसी हिलाए एटलो पाठ शिष्य कदे, तेवारें गुरु जो वांदणां देवरावे तो ( देश के० ) दे ए पाठक, अने वांदणां न देवरावे तो " तिविदेश " एवो पाठ कहे, ए प्रथम गुरुवचन जाणवुं, तथा 'प्रजाह मे मिनग्गई' ए पाठ शिष्य कहे, तेवारें गुरु कहे ( प्राणामि के० ) प्रज्ञा प्रपुं कुं: ए बीजुं गुरुवचन जाणवुं, तथा निसीहि इत्यादिक जेवारें शिष्य कहे, तेवारें गुरु कदे ( तहत के० ) तथेति ए त्रीजुं गुरुवचन जा वुं, तथा जेवारें जत्ता ने इत्यादि शिष्य कहे, तेवारें गुरु कहे ( टुविट्टए के० ) तुमने कानें पण वर्ते बे ? ए चोथुं गुरुवचन जाणवुं, तथा जे
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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