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गुरुवंदन नाष्य अर्थसहित. १६७ के ? गुरुना अन्नावे जे धर्मानुष्ठान करवू, ते शून्य नाव गणाय, हवे दृष्टांत कहे जे. जेम (जिणवि रहमी के०) दमणां श्रीजिनेश्वरनो विरह बता (जिणबिंब के ) श्रीतीर्थकरना बिंब एटले प्रति मानी (सेवण के ) सेवन करीने (आमंतणं के) आमंत्रण करवं. जे हे नगवंत! तमे मुज ने संसार समुश्थकी तारो, मोद आपो इत्यादि क जे कहे, ते (सहलं के ) सकल श्राय डे ए दृष्टांते इहां पण श्रीगुरुना विरहें गुरुनी स्थाप ना पण सफल होय . ए गुरु स्थापनाना एकज बोलनुं पन्नरमुं चार थयु. नुत्तर बोल १५ थया ॥ ३० ॥ हवे बे प्रकारना अवग्रह- शोलमुं हार कहे . __चनदिसि गुरुग्गहो इह, अछुत तेरस करे सपरपरके ॥ अणणुनायस्ससया, न कप्पए तव पविसेन ॥३१॥ दारं ॥१६॥
अर्थः-(इह के ) ए श्रीजिनशासनमांहे (गुरुग्गहो के ) गुरुथकी अवग्रह (चनदिसि