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१६० गुरुवंदन नाष्य अर्थसहित. रजोहरणे हाथ न लगामे ते त्रीजो नांगो, तथा रजोहरण अने मस्तक बेहुने हाय फरसे नही एटले लगामे नहीं, आश्लेो नही, ते चोथो नंग जाणवो. ए चार नांगामा प्रथम नांगो शुक्ष अने पाउला त्रण नांगा अशुइ दोषावतार जा
वा. ए त्रण नांगे कर वंदन करे ते सत्तावीश मो (अणिमालिके०) आश्लिटानालिट दोष जाणवो. तथा जे आवश्यकादिकें पाठ आलावा असंपूर्ण कहेतोयको वांदे, ते अावीशमो (क ए के) ऊस दोष जाणवो. तथा जे वांदणे वां दोने पो महाटे शब्दे करी 'मबएग वंदामि' एम कहे, ते गणत्रीशमो (नत्तरचलिम के०) उत्तरचूलिका दोष जाणवो. तथा जे पालाप श्रा वादिकने मूकनी परे अगउचरतो वांदे, ते त्र) शमो (मूअं के ) मूकदोष जाणवो. तथा जे पालावाने अत्यंत महोटे स्वरें नचार करतो वां दे, ते एकत्रीशमो (ढहर के०) ढहर दोष जाण वो. तथा जे अंबुसमानी पेरे रजोहरण हमे य हण करी रजोदरणने जमामतो थको वांदणां