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________________ १५७ गुरुवंदन नाष्य अर्थसहित. काष्ठनी पेरे देखाय , एम तर्जना करतो वांदे, अथवा तर्जनी अंगुलियादिके तर्जना देतो थको वांदे, एटले कहे के एने रूषेयी शुं? अने तुठेथी पण शुं ? एम तर्जतो थको वांदे, ते नगणीश मो (तक्रिय के) तर्हित दोष जाणवो. तथा जे मायादिक कपटें करी वांदे, अथवा ग्लानादि क व्यपदेश करी सम्यक प्रकारे न वांदे, ते वी शमो (सह के ) शठ दोष जाणवो. तथा हे गणि! हे वाचक! तमने वांदवायो शुं फल थाय? एवी रीते जात्यादिकनी हेलना करतो "श्रको वांदे, ते एकवीशमो (हिलिय के ) हिबित दोष जाणवो. तथा अहाँ वांदगां देने वचमां वली देशकथादिक विकथान करतो करतो अनि याने वांदे, ते बावीशमो ( विपलियचिअयं के) विपलितचित्तकं एटले विपलितचित्त दोष जागवा ॥ २४॥ जे मुंगो रही गनो मानो बेसे तेने कोइ बीजो जागी जाय जे आ गनो बेसी रह्यो तो वांदे तथा कोई अपरनुं वचमां अंतर बते न
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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