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देववंदन नाप्य अर्थसहित. १५ मत्रिक जाणवू. ए जीजुं प्रणामत्रिक को गए।
हवे चोयुं पूजात्रिक कहे . अंगग्गलावजेया, पुप्फाहार थुहिं यतिगं ।। पंचोवयारा अठो, क्यार सबोव यारा वा ॥ १० ॥ . अर्थः-(अंगग्ग के ) अंगने अग्र एटले पहे ली अंगपूजा अने बीजी पागल ढोवारूप अग्रपू जा, तथा त्रीजी चैत्यवंदनरूप (नाव के)मा वपूजा ए त्रण (नेया के) नेदथकी अनुक्रमें ((पुप्फाहारथुइहिं के) पुष्पाहारस्तुतिनिः एट ले पहेली पुष्प केसरा दिके अने बीजी आहार फलादि टोकने तथा त्रीजी स्तुति करबे करीने (पयतिगं के) पूजा त्रिक प्राय छे. - तेमां प्रथम अंगपूजा ते श्रीवीतरागनी पूजा अवसरे मनःशुद्धि, वचनशुदि,कायशुहि, वस्त्रशुद्धि, नीतिनुं धन, पूजाना नपकरणनी शुहि, नूमिशु इ, ए सात वानां शुकरी धवल निर्मल सुपोत धोतीयां पुरुष पहेरे, अने जेनो आठपमो मुख