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________________ १४२ गुरुवंदन नाष्य अर्थसहित. तेटलाज नेला थई दान जोमे अथवा योनिथी बालक निकलते जेम रचितकर संपुट होय तेम करसंपुट कस्या हाथ जोमेलाने ललाटे लगाते यथाजात कहीय एम बे अवनत अने त्रीजु यथा जात मलीत्रण आवश्यक श्रयां. हबे शरीरना व्यापार रूप (बार के) बार (आवत्ता के०) आवर्त सूत्रानिधान गर्जित का यव्यापार विशेष जाणवां. तेमां प्रथम वांदणे उ आवर्त थाय, ते आवी रीतेः-प्रथम त्रण पावर्त तो "अहो” “कायं ” "काय” ए बेबे अ करें नीपजे एटले पोताना हाथनां तलां बे नंधा' गुरु चरणे लगामे तथा नत्तान हाथे पोतानो ल लाटदेश फरसे अने “१ अहो । कायं ३ काय संफासं" कहेतो मस्तक नमामे तेवार पनी "खमणिकोथी मामीने वश्कतो" पर्यंत यावत् कर संपुटे कहीने वलीत्रण आवर्ज त्रण त्रण अक्षरना कहे तेमां एक अदर गुरुचरणे हाथ लगामतां कहे, बीजो अकर उत्तान हाथे वचाले विशामा रूप कहे अने त्रीजो अकर ललाटदेशे
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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