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११६ गुरुवंदन नाष्य अर्थसहित. तहेव सब रायणिए ॥ किश्कम्म न का रिझा, चनसमणाई कुणं ति पुणो ॥१४॥ दारं ॥५॥६॥ __ अर्थः-एक (माय के पोतानी माता, बीजो (पिअ के०) पोतानो पिता, त्रीजो (जिन्नाया के ) पोतानो ज्येष्ठ नाइ एटले मोहोटो नाइ, चोथो (अनमावि के) वयादिके लघु होय ए टले वय प्रमुखें तो यद्यपि पोताथी न्हानो होय तो पण (तदेव के)तेमज एत्रणेनी परें ते ( सवरायणिए के) सर्व रत्नाधिक एटले. स घला पर्यायें करी ज्येष्ट होय ज्ञान, दर्शन अने चारित्रं करी अधिक होय ए चारनी पासें प्रायः (किइकम्म के) वांदणां देवराववानुं (न का रिजा के०) न करावे. ए विधि साधुने जाणवो, अने गृहस्थ पासे तो वंदन देवरावे. ए पांचमुं हार थयु. उत्तर बोल चोवीश श्रया ॥
तथा ( चनसमणाई के०) चार श्रमणादिक एटले साधु, साध्वी, श्रावक अने श्राविका ए