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११७ गुरुवंदन नाष्य अर्थसहित. जाणवा. ए ( दवेनावे के ) एक व्यश्रकी वां दणां अने बीजां नावथकी वांदणां एम (ह के) बे प्रकारें (नहेण के०) नघेन एटले सा मान्यप्रकारे जागवां ॥१०॥
हवे पांच दृष्टांतोनुं बीजें हार कहे .
सीयलय कुए वीर, कन्ह सेवग 5 पालए संबे ॥ पंचे ए दिर्हता, किइकम्मे दव नावेहिं ॥ ११ दारं ॥३॥
अर्थः-प्रथम वंदन कर्मनपर व्यवंदन अने नाववंदन आश्रयी (सीयलय के) शीतलाचा र्यनो दृष्टांत, बीजा चितिकर्म नपर (कुमुए के) कुखकाचार्यनो दृष्टांत जाणवो. त्रीजा कृतिकर्म नपर (वीरकन्द के ) वीरा शालवी नो अने कृष्ण महाराजनो दृष्टांत जाणवो. चो श्रा पूजाकर्म नपर (सेवग 5 के) राजाना बे सेवकोनो दृष्टांत जाणवो. पांचमा विनयकर्म न पर (पालए संबे के) श्रीकृष्णमहाराजना पुत्र पालक अने साम्बनो दृष्टांत जावो (ए के०)