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१५२ देववंदन नाष्य अर्थसहित. सब थुइ पुरक ॥ थुश सिधा वेआ थुश, न मुब जावंति थय जयवी ॥६॥
अर्थः-प्रथम (इरि के) इरियावहि संपूर्ण पमिक्कमि पठी चैत्यवंदननो आदेश मागी (नमु कार के) नमस्कार कही परी (नमुत्रुण के०) नमुबुणं कहे. पी नन्नो थइ (अरिहंत के) अरिहंत चेश्याणं कही कानस्सग्ग करी एक ती थकरनी (शुई के०) स्तुति कहे. पनी (लोग के ) लोगस्स कहीये पग (सबथु के) स व्वलोए अरिहंत चेश्याणं कही कानस्सग्ग करी सर्व तीर्थंकरनी बीजो स्तुति कहिये, पनी (पुरक के) पुरस्करवरदी कही कानस्सग्ग करी श्री सि
तनी त्रीजी (थुश् के) स्तुति कहेवी पी (सिक्ष के०) सिक्षणं बुझाएं (वेत्रा के) वे यावञ्चगराणं इत्यादिक कही कानस्सग्ग करी अ धिष्ठायिक देवोनी चोथी (युश् के) स्तुति कही पनी नीचें बेसीने (नमुबु के०) नमुचुणं संपूर्ण कहीने (जावंति के) जावंति चेआई जावंत केवि साहु कही नमोर्हत् सिशचार्योपाध्यायसर्व