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________________ आत्मानुशासन. युवावस्थामें विषयसुख भोगकर वृद्धावस्थामें धर्म साधने की इच्छा रखने वाले से कहते हैं:पलितच्छलेन देहान्निर्गच्छति शुद्धिरेव तव बुद्धेः । कथमिव परलोकार्थं जरी वराकस्तदा स्मरति ॥ ८६ ॥ अर्थ :- बुढापा आनेपर लोगों के बाल कालेसे सफेद हो जाते हैं, बुद्धिकी सावधानी भी नष्ट हो जाती है । बुद्धिविकासका स्वरूप ठीक सफेद वर्णन किया जा सकता है परंतु वह अदृश्य चीज है इसलिये उस बुद्धिकी सावधानीका निकल जाना, एक चीजको बाहिर प्रगट होते हुए देखकर कविने सिद्ध किया है। इसको कविलोग उत्प्रेक्षा कहते हैं । वह यों कि, अरे मूर्ख, तू समझता होगा कि युवावस्था में भोगोंको खूब भोगकर भी वुढापेके समय धर्मसेवन करलूंगा जिससे कि परलोकका सुधार होसकता है। परंतु तेरी यह समझ बहुत भूलकी है; क्योंकि बुढापा आजानेपर जो तेरे बाल सफेद पडजाते हैं, उन्हें हम ऐसा समझते हैं कि वे बाल नहीं हैं। तो, इस छलसे तेरी सुध बुध शरीरसे निकल रही है । इसीलिये तो बुढापेमें बुद्धि सावधान नहीं रहती । सावधानी जो बुद्धिकी थी वह जब शरीर से निकलगई तो सावधानी के रहते हुए जो काम होसकते हैं वे काम फिर कैसे पूरे पडेंगे ? इससे तो बुढापा आजानेपर छोटी छोटी बातों तकका स्मरण नहीं रहता, समझ भी उलटी ही हो जाती है। ऐसी हालतमें जब कि ऐहिक छोटी छोटी बातें भी ठीक नही रहसकती तो फिर परलोक संबंधी पूरा लक्ष्य रखकर करने योग्य धर्मकार्य कैसे किये जासकते हैं? करना तो दूर रहा, उन कामका स्मरण भी ठीक ठीक कहांसे रहसकता है ? अरे भाई, इसलिये तुझे जो कुछ करना हो उसे इसी समय कर ले | विषयमें न फसकर परमार्थप्रवृत्ति करनेवालोंकी दुर्लभताः - इष्टार्थाद्यदवाप्ततद्भवसुखक्षाराम्भसि प्रस्फुरन्नानामानसदुःखवाडवशिखा संदीपिताभ्यन्तरे । ७२
SR No.022323
Book TitleAatmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1916
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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