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________________ हिंदी-भाव सहित (धर्मकी महिमा )। २३ हैं। इसलिये व्रती होनेसे सहनमें इहपरलोकका सुधार हो सकता व्रतियोंको भी कभी कभी उपसर्गादि भयंकर वेदनाके निमित्त उपस्थित होजानसे अहिंसा, झूठ बोलने इत्यादि पापोंमें प्रवृत्ति करनी पडती है यह शंका होना साहजिक है । परंतु पुण्यके योगसे सर्व उपद्रवोंका दूर होना संभव है । देखोःपुण्यं कुरुष्व कृतपुण्यमनीदृशोपि नोपद्रवोभिभवति प्रभवेञ्च भूत्यै । संतापयन् जगदशेषमशीतरश्मिः पद्मषु पश्य विदधाति विकाशलक्ष्मीम् ॥ ३१॥ अर्थः-रे भव्य, पुण्यका संचय कर । जिसने पुण्यका संचय किया हो उसको असामान्य उपद्रव भी कुछ दु:ख नहीं देसमते, किंतु उलटे संपत्ति मिलनेके कभी कभी कारण होत दीखते हैं। देखो, जो सूर्य संपूर्ण जगको संतापित करनेवाला है, कमलों में उसीसे विकाशरूप शोभा प्रगट होती है। यहां शंका होगी कि उपद्रव या उपसर्गसे विभूति या सुखकी प्राप्ति कैसे हो? क्या कभी विष खानेसे भी मनुष्य जिएगा या पुष्ट होगा? इसका उत्तर यही है कि पुण्यकी महिमा अकथनीय है । उपसर्गोसे दुःख पापी जनोंको ही होता है । इसकेलिये सूर्यका दृष्टांत बस है । देखो, जिस सूर्यमे सभी जगको संताप होता है पर कमल उसके किरण पाकर भी खिलते ही हैं। कोई चाहें कि मैं पुण्य कर्मकी परवाह न करके अपने पुरुषार्थमे ही दुःख दूर कर सकता हूं तो यह विचार सव व्यर्थ है । देखो : नेता यस्य वृहस्पतिः प्रहरणं वज्रं सुः: सैनिकाः, ___ स्वर्गो दुर्गमनुग्रहः खलु हरेरैरावणो वारणः। इत्याश्चर्यबलान्वितोपि बलभिद्भग्नः परैः संगरे तव्यक्तं ननु दैवमेव शरणं धिग्धिगू वृथा पौरुषम् ॥ ३२ ॥
SR No.022323
Book TitleAatmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1916
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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