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________________ हिंदी-भाव सहित ( अंतिम वक्तव्यं ) । अन्तिम मंगल:ऋषभो नाभिसूनुर्यो भूयात्स भविकाय वः। यज्ज्ञानसरसि विश्वं सरोजमिव भासते ॥ २७० ।। अर्थः- अंतिम मनु या कुलंकर श्री. नाभिराजके पुत्र जो श्री. वृषभनाथ प्रथम तीर्थकर, वे तुमारे कल्याणके कर्ता हो । जिनके कि ज्ञान-सरोवरमें सारा जग कमलके तुल्य भासता है । भावार्थ:-जब कि जगके जीवोंमें मोक्षका तथा. न्याय-निर्वाहका उद्योग सर्वथा ही बंद पडरहा था और उसकी आवश्यकता आपडी थी तब इसके थोडे-बहुत उन्नेता जनोंका क्रमसे प्रारंभ होकर अंतमें पूर्ण-योग्य नेता व उन्नेता श्री. वृषभस्वामीका अवतार हुआ। उन्होंने सृष्टिके जीवोंको दुःखसे छूटकर सुखमें प्राप्त होनेका अनेक प्रकार उपदेश दिया व शासन भी किया। उनके वाद अनेक पुरुष और भी वैसे ही उत्पन्न हुए और उन्होंने भी यही काम किया । जगके जीवाको सुखमें लगाकर वे आप भी परमधाम जाते रहे । इस प्रकार इस सृष्टिपर आजतक यद्यपि अनेकों पुरुष ऐसे हुए कि जिन्होंने जीवोंके कल्याणका वास्तविक मार्ग प्रगट किया व जारी रक्खा, परंतु उन सवोंमें इस प्रवर्तते हुए युगमें पहिले महात्मा श्री वृषभ देव या ऋषभ देव ही हुए हैं। इसीलिये ग्रंथकार उन भगवानका यहां स्मरण करते हैं और वाकी भव्य जीवोंको कहते हैं कि तुम भी उन्हीके उपदेशसे तरोंगे। ____ संसारमें आजतक अनेकों मनुष्य ऐसे हुए हैं कि जिन्होंने एक दूसरेकी देखादेखी जीवोंके व अपने सुखका विचार किया और जैसा विचारा वैसा उपदेश किया। परंतु जैसा कुछ निर्दोष कल्याणमार्ग भगवान् ऋषभ देवकी परंपरामें आजतक प्राप्त होता रहा है वैसा अन्यत्र नहीं । हो कहांसे ? सत्य मा का शोध ज्ञान विना नहीं लगसकता है। ज्ञान यदि वास्तविक तथा पूर्ण कहीं था तो यहींपर । इसीलिये हितार्थी जीवोंको दयालु ग्रंथकार कहते हैं कि तुझारा सच्चा कल्याण उन्ही
SR No.022323
Book TitleAatmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1916
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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