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________________ १३६ आत्मानुशासन. कि ऐसा है तो योनि मानो उस शस्त्रका आघात होनेसे विदीर्ण हुई घावकी जगह है। अथवा, यह मोक्षरूप ऊचे पर्वतपर चढनेवालोंको गिरादेनेवाला खड्डा है । पर्वतोंके आजू-बाजुओंमें जो कहीं कहींपर बडे बडे खड्डे होते हैं उनमें गिरजानेपर मनुष्य फिर वहांसे पर्वतकी चोटीतक नहीं पहुच पाता । इसलिये उन खड्डोंसे सभी रास्तागीर वचकर निकलते हैं। मोक्ष-पर्वतपर चढनेकेलिये निकले हुए जीवोंकेलिये यह भी एक वहां तक पहुचनेसे रुकावट करनेवाला खड्डा है । जो मोक्ष पहुचना चाहते हैं वे इस खड्डेसे बहुत ही बच करके निकलते हैं। नहीं तो यदि, इस खड्डमें पडजाय तो फिर वहांसे मोक्षतक पहुचना कैसा ? अथवा, काम यह एक बड़ा भयंकर सर्प है। योनि, यह उसके रहनेका बिल है। जो मनुष्य इसमें क्रीडा करना चाहता है उसे यह भीतर बैठा हुआ काम-सर्प अवश्य डसता है । इसीसे तो कामी मनुष्य विहल होते हैं व हिताहितके विचारसे शून्य होते हैं, मोहित होते हैं। - विद्वान् मनुष्योंने अनेक प्रकारको तर्कणा करके यह बात तय की है कि स्त्रियोंके साथ रति करनेसे ये दुःख होते हैं और स्त्रियोंका योनिस्थान इस प्रकार दुःखका निदान कारण है । और भी देखियेः अध्यास्यापि तपोवनं वत परे नारीकटीकोटरे, व्याकृष्टा विषयैः पतन्ति करिणः कूटावपाते यथा । प्रोचे प्रीतिकरी जनस्य जननीं प्राग्जन्मभूमिं च यो, व्यक्तं तस्य दुरात्मनो दुरुदितैर्मन्ये जगद्वञ्चितम् ॥१३॥ ___ अर्थः-जो विचारे धर्मसे वंचित हैं वे आत्मकल्याणकी इच्छासे यदि तपोवनमें भी जाचुके हों पर वहां भी उन्हें काम सताता ही है । वहां भी वे स्त्रियोंके योनिस्थानमें जाकर पडते ही हैं। क्यों न हो ? जब वे विषयोंसे सताये जाते हैं तब वे परवश उधर खिचते हैं।
SR No.022323
Book TitleAatmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1916
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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