SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिंदी-भाव सहित (विषयोंसे सावधानी)। थोडासा सुख दीख पडता हो उसे ऐसा समझो जैसे अंधेके हाथ बटेर । अंधा हाथ पसारै और बटेर उसके हाथमें पडजाय, यह जैसा असंभव नहीं पर, अति कठिन है वैसे ही संसार जहां कि दुःख ही दुःख नजर आते हैं उसमें कभी कहीं सुखका लेश मिलजाना असंभव नहीं तो भी अतिकठिन तो है ही। ___ जो काम सहज रीतिसे सब जगह होते रहते हैं उन्हें ' अजाकृपाणीय' कहते हैं । यह शब्द उपमाद्योतक है । ' अंधकवर्तकीय' शब्द भी उपमार्थका द्योतक है। अतिकष्ट साध्य कामोंकेलिये यह शब्द बोला जाता है । भावार्थ, दुःखके साधन तो सदा सभी कामोंमें मिलते रहते हैं पर सुखके साधनोंका मिलना अति दुर्लभ । किंतु चांह तुझे मुखकी ही होरही है । इसलिये सुखके साधन तुझै तभी मिलसकेंगे जब कि तू बहुत ही सोच समझकर चलेगा और आत्माका कल्याण विषयोंसे विमुख होकर साधना चाहेगा। काम सुख चाहने बाले की दशाःहा कष्टमिष्टवनिताभिरकाण्ड एव, चण्डो विखण्डयति पण्डितमानिनोपि । पश्याद्भुतं तदपि घोरतया सहन्ते, दग्धुं तपोनिभिरमुं न समुत्सहन्ते ॥ १०१॥ अर्थ:-कोई मनुष्य किसीको यदि धनुष लेकर प्रत्यक्ष मारना चाहे तथा शस्त्रादि अप्रिय वस्तुसे मारना चाहे तो उससे मनुष्य सावधान हो सकता है, अपनी रक्षाके लिये कभी कभी उलटा मारने भी लगता है और धोखा नहीं खाता । यदि पूरा मूर्ख ही कोई मनुष्य हो तो १ इसीको संस्कृत भाषामें ' अन्धकवर्तकीय' न्याय कहते हैं। २ ' काण्ड' यह नाम धनुष तथा समयका है। इसलिये सप्तमी विभक्ति माननेसे असमयमें' ऐसा इसका अर्थ होगा । और यदि प्रथमा विभक्ति मानकर बहुव्रीहि समास माने तो कामका विशेषण हो सकेगा और तब अर्थ होगा कि 'धनुषरहित'।
SR No.022323
Book TitleAatmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1916
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy