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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । नरक विषै पतन होइ । ऐसा दोषनै धर्मात्मा पुरुष सर्व प्रकार करि जन्म पर्यंत रात्रिका खान पान तजौ । एक मांसका रात्र भोजनका त्यागका फल पंद्रह उपवासका फल होय ऐसे रात्रि भोजनका स्वरूप जानना । अरि दिन विषै ताखाना विषै गुफा विषै वा बांदल विषै आंधी वा धूल्याके निमित्त करि चौहड़े अंधेरा होय ता समय भोजन करिये तौ रात्रि सादृश्य दोष जाननां । भावार्थ - जीव नजर न आवै तौ दिन विषै भी भोजन करना उचित नाहीं । इति रात्रि दोष । । आगे चूल्हा रात्रि न वारिये ताका दोष दिखाईए है । प्रथम तौ रात्रि कोई जन्तू सूझे नाहीं अरु छानेमै तौ त्रस जीवाका समूह है अरु आला काकी खबर परे नाहीं, जो आला छौना होई ता विषै पइसा पइमा भरा गिडोलानै आदि दै बालका अग्रभाग संख्यातका वा भाग पर्यंत सैकड़ा हजारों लाखां असंख जीवाका समूह पावनै है । सो सर्व चूल्हा विषै भस्म होयजाय । अरु लाकड़ी बालिये तौ वा विषै भी अनेक प्रकारकी लट वा कीड़ी व कनसला व अलीखा आदि बहुत त्रस जीवका समूह होय है । भावार्थ - घनी तरह लाकड़ी तो बीधी होय है ता विषै तौ जीव अगिनित है ही अरु लकड़ी पोली होय है ता विषै कीड़ी मकोड़ी मकोड़ा उदेई कामला सपली आपैस जाई है । अरु जेठमासका निमित्त पाइ सरदी होय तौ कुंथिया निगोद आदि जीवकी उत्पत्ति होय पाछै वैसाही बली तानै बालिये तौ वाके जीव दग्ध होंय । ता पापीकी काई पूछनी । बहुरि चूल्हा विषै उनताका निमित्त पाइ वा छिद्र आदि आश्रयका निमित्त पाइ कीड़ी मकोड़ी आदि त्रस जीव रहैं हैं । सो सब
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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