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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । - - - तथा गहनौ व दासी दास कहिये नौकर नौकरनी १ कूप भांड वस्त्र तथा सुगंधि भाजनादि १ इनका प्रतिक्रम कहिये प्रमान किया था ताकौ उलंघना व दिग्वतके अतीचार पांच ऊर्ध्व व्यतिक्रम कहिये ऊर्ध्व दिशाका प्रमान उलंघना व अधो व्यतिक्रम कहिये अधो दिशाका प्रमान उलंघना २ तिर्य व्यतिक्रम कहिये तिर्यक दिशाको उलंघन करना ३ क्षेत्र वृद्धि कहिये क्षेत्रका जो प्रमान था सोई क्षेत्रका प्रमान बधाय दैना ४ स्मृत्यन्तराधान कहिये क्षेत्रका प्रमान किया था ताहि भूल जाना ५ ऐसे जानना देशव्रतके अतीचार। व आनयन कहिये मर्यादा उपरांत क्षेत्र तै वस्तु मगावना १ व प्रेष प्रयोग्य कहिये मर्यादा उपरांत वस्तु भेजनी २ शब्दानुपात कहिये प्रमान उपरांत क्षेत्र तै शब्द कहि काहू को बुलावना ३ रूपानुपात कहिये प्रमान उपरांत क्षेत्र विषै अपना रूप दिखाय अभिप्राय जनाय दैना ४ पुद्गल क्षेप कहिये प्रमान उपरांत क्षेत्र विष कंकरी इत्यादि वगावना। ५ अनर्थदंड व्रतके अतीचार पांच । कंदर्प कहिये कामोद्दीपन आहारादिकका करना १ कौत्कुच्च कहिये मुख मोड़ना आंख चलावनी भौह नचावनी २ मौखर्य कहिये वृथा बकवाद करना ३ अमीक्षादिकरन कहिये विगर देख वस्तुनका उठावना मेलना ४ भोगानर्थ कहिये निषिद्ध भोगोपभोगका सेवना ६ सामायिकके अतिचार पांच । मनोयोग दुःप्रनिधानान कहिये मनकी दुष्टता १ । वचनयोग दुःप्रनिधानान कहिये बचनकी दुष्टता २ काययोग दुःप्रनिधानान कहिये शरीरकी दुष्टता ३ अनादार कहिये सामायिकका निरादर ४ स्मृति अनुप. स्थान कहिये पाठका भूल जाना ५ प्रोषधोपवासके अतीचार
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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