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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । २९ - - - shah-rnNAAM ~ ~ ~ ~ v- है । अरु साधक सम्पूर्ण कर चुक्या ऐसा प्रयोजन नानना । अबै पाक्षिक वा साधकनै छोड़ि नैष्ठिक तिनका सामान्यपनै वर्णन करिये है । प्रथम दर्शन प्रतिमाको धारक सात व्यसन अतीचार सहित छोड़े । अरु आठ मूल गुन अतिचार रहित ग्रहण करै । अर दूसरौ व्रत प्रतिमाको धारक पांच अनुव्रत तीन गुणव्रत चार शिक्षाव्रत . इनइ व्रतोंका गृहण करे। अरु तीसरौ सामायिक व्रतधारक अधौन (सांझ) सवारे व मध्यान विषै सामायिक करै । अरु चौथा प्रोषध व्रतको धारक आठै चौदश जे परबी तिन विषै आरम्भ छोड़ि धर्मस्थान विषै वसै । अरु पांचमौ सचित्त त्याग व्रतको धारक सचित्तको त्याग करे । रात्रि भुक्त त्याग व्रत को धारक रात्रि भोजन छोड़े। अरु दिन विषे कशील छीड़े।, अरु सातथौ ब्रह्मचर्य वृतको धारक रात्रि या दिन विषै मैथुन सेवन तजे अर आठमो आरम्भत्याग व्रतको धारक आरम्भ तजे अरु नवमौ परिग्रहत्याग व्रतको घारक परिग्रह तजे। अरु दशमौ अनुमति त्याग वृतको धारक पाप कार्यका उपदेश वा अनुमोदना तजे। अरु ग्यारमो उद्दिष्ट त्यागव्रतको धारक उपदेशो भोजन तनै । ऐसा सामान्य लक्षण जाननां ऐठा आगै इनका विशेष वर्नन करिये है । सो दर्शनप्रतिमाको धारक आठ मूल गुण पूर्व कहा सो ग्रहन करै अरु सात व्यसन तनै अरु इनका अतीचार तजै अथवा कोई आचार्य आठ मूलगुण ऐसै कहे हैं पांच उदंबरका एक अरु तीन मकारका तीन सो चार नौ पूवै आठ कह्या तेही भया। अरु चार और जानना सोई कहिये है। णमोकारमंत्रका धारण अरु दयाचित्त अरु रात्रि भोजनका
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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