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________________ २९० ज्ञानानन्द श्रावकाचार | करानी अरु भगताकी सहाई करनी अरु रागद्वेष रूप प्रवर्ति अरु अपनी बड़ाई परकी निन्दा ऐसा ज में वनन होय । पांचों इन्द्रियांके पोषनमें धर्म जानें । अरु तालाब कुआ बावड़ी आदि निवा नवा बागादि बनावनेमें धर्म माने अरु श्राद्धका करवामें अरु रात्रिभोजन करवा विषे धर्म माने अरु जग्य करवा वि धर्म माने ताका ना विर्षे वनन होय अरुयों कर प्राग आदि तीर्थका करवा विषे अरु विषय कर आसक्त नाना प्रकारके कदेव ताका पूनवां विषं धर्म मानें ताका जा विषं वर्नन होय अरु दस प्रकारका खोटा दान ताका व्योरो स्त्री दासी दासको दान हाथी घोड़ा ऊंट ऐमा बलध गाय मेंस अरु धरती ग्राम हवेली बहुरि छुरी कटारी बरछी तरव.र लाठी राहु केतु गृहके निमित्त लोह तिल तेल वस्त्रादि देना अरु गाढ़ा रथ वहल आदिका देना दंड वा रूपा सोना आदि धात वा ताका गहने बनाय देना काकड़ी खरबूनादिक फलका देना मरा सकरकंद सुरन आदि कंदमूलका देना अरु नाना प्रकार हरित कायका देना अरु ब्राह्मन भोजन करावना बहुरि कुल आदिन्यानकू निवावना लाहन आदिकका करना इत्यादि अनेक प्रकारके खोटा दान हैं । ताका जामें वर्नन होय या न जाने कि ये दान पापका कारन हैं । हिंसा कषाय विषयकी आसक्तता वा तीव्रता या दान दिया होय छे । तातें ये दान पापका कारन छै जाका फल नर्कादिक है और जामें अंगार गीत नृत्यादि अनेक प्रकारकी कला चतुराई हावभाव कटाक्ष जामें ताका वर्नन होय अरु वस्तुको स्वरूप और भांत अरु कहै और भांत ऐसा अनथार्थ पार्थमें बनन होय इत्यादि जीवको भव भवमें दुखके कारन ताका जामें दन । होसी
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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