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________________ - २४ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । कहिये मुन्याका पद कमल प्रक्षालन करै सोई भया गंधोदिक सो अपना मस्तक आदि उत्तम अङ्गों के कर्मका नाश कै अर्थ लगाव अपनैको धन्य मानै वा कृत्य कृत्य मानै । पाछै अर्चन कहिये मुन्याकी पूजा करै । पाछै प्रनाम कहिये मुन्याका चरनानै नमस्कार करै । बहुरि मन शुद्ध कहिये मन प्रफुल्लित होय महा हर्ष होय बहुरि वचन शुद्धि कहिये मीठा मीठा वचन बोलै बहुरि काय शुद्धि कहिये विनयवान होइ शरीरका अङ्गोपांगको नम्रीभूत करै । ... बहुर ऐषण शुद्धि कहिये दोष रहित शुद्ध अहार देई । ऐसै नवधाभक्तिका स्वरूप जानना । आगै दातारके सात गुन कहिये मुन्याने अहार देई लोकके फलकी वांक्षा न करै क्षमावान होई कपट रहित होई अदेक सखापनो न होइ अरु विषाद करि रहित होई हरष संजुक्त होई अहंकार रहित होई ऐसे सात गुण सहित जानना सोई दातार स्वर्गादिकका सुख भोग परंपरा मोक्षस्थान पहुंचे है ऐसे शुद्धोपयोगी मुन तारनतरन है । आचार्य, उपाध्याय, साधु ताके चरनकमलको म्हारा नमस्कार होउ । अरु कल्यानके कर्ता हो । अस भवसागर विषै पड़तानै राखौ ऐसे मुन्याका स्वरूप वर्नन करा । सो हे भव्य ! जौ तूं आपना हितनै वांझै छै । तौ सदैव ऐसा गुर यांका चरनारबिंद सेवो अन्यका सेवन दूरही तें तनो । इति गुरु स्वरूप वर्णन सम्पूर्ण ।। - १-ऐसें आचार्य, उपाध्याय, साधु या तीन प्रकारके गुराका भेला ही बर्नन किया तीनौ ही शुद्धोपयोगी हैं । तातें समानता है विशेषता नाहीं ऐसे श्री गुराकी स्तुति करि वा नमस्कार करि वा ताके गुन वर्नन करि ईटै आगै ज्ञानानंद पूरित निरभर निन रस श्रावकाचार नाम
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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