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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार | २८१ पीछे वैसे ही दिक्षा धरे । अरु शुद्ध होय । पाछे वे बालक आठ दस वर्षका बड़ा होय तत्र याकूं न माय न बाप ऐसे लड़का बतलाइ हास्य करें | तब वह बालकजीके पले तीने जाय पूछें म्हारा माता पिता कौन है तब वे ज्यों का त्यों मुनि अर्जिकाका वृतान्त कहें। तब वह बालक आपना माता पिता मुनि अर्जिकाने जान वाही मुनि पास दिक्षा घरे - सो आगे तो मुनि अर्जिकाका वीर्य सों उपज्या तातें महा पराक्रमी था ही पाछे नाना प्रकार के मुनि संबंधी तपश्चरन कर अनेक रिद्ध फुरें वा अनेक विद्या सिद्ध होय पाछें केवली व अवधि ज्ञानी मुनि ताका मुख थकी या सुने यो महादेव स्त्री के संयोग कर मुनिपद भ्रष्ट होसी । पाछे यह महादेव पनि भ्रष्ट होवाका भय थकी एकान्त जायगा ध्यान धरे पाछे होनहारका जोग कर उठां ही विद्याधराकीं कन्या आवे तहां वे स्नान आदि कीड़ा करे । तब वे कन्या कहे हे का जाना हमारां पिता जाने । तब महादेव कहे थारा पिता परनावे तत्र भी थे परनोली तब उन कही परनसी तब ऐसो कौन -कराय वस्त्र दिया तब वे कन्या जाय अपने मातापिताने महादेव मुनिको सकल वृतान्त कहो । तब कन्याका माता पिता ने जानी यह महादेव महा पराक्रमी है । न परनायें तो महा उपद्रव करसी ऐसो जान कन्या परनाय पाछे वो महादेव सौ स्त्रीने भोगई सो महादेव महापराक्रमी है। सो महांदेवके वीर्यके तेज कर वे मर गईं । पाछें और भी राजपुत्री परन्या सो अनुक्रम कर सगली मर गई पाछे अन्त समय में एक पर्वतनामा राजाकी पुत्री पारवती परनी सोयाका भोग कर या टिकी सोई पारवतीने रातदिन चाहे
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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