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________________ २७२ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । मनुष्य भयो, कलानो तिर्यंच भयो, फलानो मुक्ति गयो, फलानो दुखी, फलानो सुखी, फलानो चैतन्य, फलानो अचैतन्य इत्यादि जुदे जुदे पदार्थ जगतमें देखिये है । ताळू झूठा कैसे कहिये अरु जे सर्व जीव पुद्गल एकसा होता तो एकके दुःखी होते सर्व दुःखी होते अरु एकका सुखी होते सारा ही सुखी होय । अरु चैतन्य पदार्थ छे ताके भी सुख दुःख होय सो तो देख्या नाहीं। बहुरि जे सर्व ही पदार्थकी एक सत्ता होय तो अनेक नामकू पावे अरु फलाना खोटा कर्म किया फलाना चोखा किया ऐसा क्यूंने कहना पड़े सर्व मई व्यापक एक पदार्थ हवा तो आपकू आप दुःख कैसे दिया । सो कोई त्रैलोकमें नाहीं जो आपकू आप दु ख दिया चाहे । जो आपकुँ आप दुःख देवामें सिद्ध होय तो सर्व जीव दुःखने कैसे चाहें तासू नाना प्रकारके जुदा जुदा पदार्थ स्वयमेव अनादि निधन बन्यां है । कोई किसीका कर्ता नाहीं सर्व व्यापी एक बृह्मका कहवामें बड़ी विपरीति प्रत्यक्ष दीखे है । ताते हे सूक्ष्म बुद्धि तेरा श्रद्ध न मिथ्या है प्रत्यक्ष वस्तु आख्यां देखिये तामें संदेह काई तामें प्रश्न काई आखां देखी वस्तुने भूले है । जो प्रत्यक्ष मर गया ताकू आन माने तो वा सारखा मूर्ख संसारमें और नाहीं । अरु तूं यह कहसी मैं काई करूं फलाना शास्त्रमें कही है यह सर्वज्ञका वचन है ताकू झूठा कैसे मानियें । ताकू कहिये है रे भाई प्रत्यक्ष प्रमान · विरुद्ध होय ताका आगम साक्षी नाहीं। अझ वे आगमका कर्ता प्रमानीक पुरुष नाहीं । यह निःसंदेह है जाका आगम प्रत्यक्ष प्रमाणसों मिले सो आगम प्रमान है अरु वह आगमका कर्ता पुरुष प्रमान है।
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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