SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । आगे खोटे मारग चाल्या तो ये भी खोटे मारग चाले । अरु बड़ा आछा मारग चाले तो आछा चाले पन याके ऐसा ज्ञान नाहीं के आछा मारग कौन अरु. खोटा मारग कौन ऐसा ज्ञान हो तो खोटाकू छोड़ आछा ग्रहण करे । जगतमें एक ज्ञानहीकी बड़ाई है जामें ज्ञान विशेष है सोई जग कर 'पूज्य है । ताहीकू सब सेवे हैं अरु ज्ञान ही जीवनका निन स्वभाव है जासूं धर्म परीक्षा कर ग्रहन करनें । अब आगे कुदेवादिकका लक्षन कहिये है सो हे भव्य तूं जान जामें रागद्वेष होय सर्वज्ञपनाका अभाव होइ ते ते सर्व कुदेवादिक जानना कहां ताई याका वर्णन न करिये दोय चार दस बीस तरहके होयं तो कहना भी आवे । तातें ऐसा निश्चय करना सर्वज्ञ वीतराग हैं-तेई देव हैं । अरु ताहीका वचन अनुसार सास्त्र हैं। सो सास्त्रानुसार प्रवर्ते सो धर्म है अरु ताही अनुसार दस प्रकार बाह्य परिग्रह चौदह प्रकार अंतरंग परिग्रह रहित निग्रंथ बारके अग्रभागके सौमें भाग भी परिग्रह नाहीं। वीतराग स्वरूपके धारक तेई निग्रंथ गुरु हैं । आप भव समुदतै तिरे औरांने तारे धर्मसे ये इस लोकमें जस बड़ाई किछू चाहें नाहीं । अरु परलोकमें स्वर्गादिककू भी चाहें नाहीं । एक मुक्ति हू को चाहें ऐसा देव गुरु धर्म उपरान्त अवशेष रहा सो सर्व कुगुरु कुधर्म कुदेव जानना आगे और कहिये है। केई तो खुदाकू सर्व सृष्टि का करता माने हैं । कैइ ब्रह्मा, बिष्नु, महेशकू भेले - करता माने हैं । कोई एकला नारायनकू कर्ता माने हैं कैई एक शंकर कहिये महादेव ताकों करता माने हैं । कैई बड़ी भवानीकू
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy