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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
सोई जाता रहे अरु तमासगीर हू जाते रहें तैसे कुटुम्ब परवारका चरित्र है । अरु माया है सो विजुलीके चमत्कार समान चंचल है । अरु जोवन है सो सांझकी ललाई समान है। सो जाने आदि दे सर्व ठाठ विनासीक है छिन भंगुर हैं कर्मजनित हैं पराधीन हैं। ई सामग्रीमें हमारो कोई नाहीं। हमारो चैतन्य स्वरूप सासतो अविनासी है । हूं कौनको सोच करूं और कौन सो राच्यों अब असरन अनुपेक्षा चिन्तवे छै । देखो भाई था संसारमें देव विद्याधर वा इन्द्र धरणेन्द्र वा नारायन प्रति नारायन वा बल्देव वा रुद्र वा चक्री कामदेवने आदि दे कोई सरन नाहीं। ऐ भी सबकालके बस हैं। तो और कौने सरन राखसी तासू वाह्य मोने पंचपरमेष्टी सरन है। अरु निश्च सरन हमारो निन स्वरूप है । और त्रिकालमें सरन नाहीं। अब संसारानुपेक्षा चिंतवे हैं । देखो भाई यो जीव भूलकर मोहके बस इवो ई संसारमें जामन मरनादि दुख सहे है। तासूं या संसारमूं उदास होय निश्चे धर्म हीको निरंतर सेवन करनो । अब एकत्वानुपेक्षाको चितवन करें हैं। देखो भाई यो जीव अकेलो है ईके कुटुम्ब परवार है नाहीं नर्क गयो तो अकेलो ऐठा आयो तो एकलो अरु ऐठासूं भी एकलो जासी तीसू हमारे अनन्त दर्शन अनन्तज्ञान अनन्तसुख अनंतवीर्य यो परवार सास्वती छै । सो म्हारे साथ छै । अब अनित्यानुपेक्षाको चिन्तवन करे छे । देखो भाई छहों द्रव्य अनादि निधन अरु न्यारा न्यारा एक क्षेत्र अवगाही भेला तिष्टे है । कोई द्रव्य काहूं सो मिले नाहीं । ऐसा ही वस्तुका स्वभाव है जामें संदेह नाहीं । चैतन्य स्वरूप अमूर्तीक अरु जो