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ज्ञानानन्द श्रावकाचार । बहुत सुगंध वा अगनित वादित्र कर विमान व्याप्त हैं । सो याने आदि दे सुख सामग्री स्वर्ग में सर्व है और खोटी सामग्रीका अभाव है। ऐसी सुख सामग्री संसारमें नाहीं। जोमें स्वर्गमें पाजे अवे तो मध्यलोक आदि विषं सुख सामग्री है से स्वर्ग लोककी नकल एक अंसमात्र इहां पुन्यके फल लेस मात्र दिखावा निपजा है । सो स्वर्ग लोकका सुख बर्नन करवां समर्थ श्री गनधर देव भी नाहीं केवल ज्ञान गम्य है । सो यो जीव धर्मका प्रभाव कर सागरां पर्यंत ऐसा सुख पावे है, जांसू हे भाई तू धर्म सेवन निरंतर कर धर्म विना ऐसा भोग कदाच न पावे तासूं अपना हित वांक्षने पुरुषको धर्म सेवना जोग्य छ । कैसो छे धर्म परंपराय मोक्षको कारन छे सो ऐसा सुखमई आयुने पूरा कर पुन्य पूरा होवे कर ऊठा सोचवे है सो मास छै आयुमें बाकी रहे तब वह देवता अपना मरन जाने है । सो माला व मुकट व शरीरकी क्रान्ति मंद पड़वा थकी सो देव मरन जान बहुत झूरे है । कैसे झूरे है हाय हाय अब मैं मर जासी ये भोग सामग्री कौन भोगसी अरु मैं कौन गत जासी मोने राखवा समर्थ कोई नाहीं। अब में कांई करूं कौनकी सरन जाऊं हमारो रक्षक कोई नाही हमारा दुखकी बात कोनें कहूं । ये भोग हमारा वैरी था सो सब एकठा होय मोनें दुख देवे आया है । सो योनके सारखो यो मानसीक दुख कैसे भोगऊं । कहां तो ये स्वर्ग सारखा सुख अरु कहां एकेन्द्री आदि पर्यायका दुख सो कौड़ीके अनन्ता जीवके अरु कहां हाड़ान सू छेदे हैं हाड़ी मेरा वा राधे सो ऐसी पर्यायमें पावासी हाय हाय यो काई हूवो। ऐसानकी ऐसी दसा होय जाय है। फेर वह देव अपने परवारके