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________________ २०६ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । सभा मंडप है । कहीं ध्यान मंडप है । कहीं जिनगुन गान वा चरचा स्थान है । कहीं छत्र है कहीं महलनकी पंक्ति हैं। कहीं रतननके चौतरा हैं दरवाजेके तोरन द्वार हैं। कहीं द्वाराके आगे मानस्थंभ हैं । तिनकू देखते महां मानीनका मान दूर होय है । ताते अत्यंत ऊंचे हैं । आकास• सपर्से हैं । सब जाइगा हजारां सेनाकी रतनानकी माला लूमे हैं । जहां हजारा धूप घड़ानमें धूप खेवें हैं जागा जागा हजारां महलोंकी पंक्ति वा धुजानकी पंक्ति सोभै हैं । कैसी ध्वजा अरु कैसा है महल स्वर्ग लोकके इन्द्रादिक देवनकों वस्त्रके हालने कर मानूं सेनकर बुलावे है । कहाकर बुलावे है। कहे यहां आवो यहां आवो श्रीजीका दर्सन करो महां पुन्य उपार्ज पूर्वला कर्म कलंकने धोवो, कहीं रतनानका पुंज जगमगाट करे है कहीं हीरानकी भूमि है कहीं मानिककी कहीं सोनाकी कहीं रूपाकी कहीं पांच सात वर्न रतनानकी भूमिका है । कोई महलके थंभ हीराका है । कोईके पन्नाका कोईके मानिकका कोईके अनेक रतनाका कोईके सोना रूपाका कोई स्थानमें कल्प वृक्षोंका बन है । कहीं समान वृक्षोंका बन हैं । कहीं पहुप वाड़ी छे तिनमें रतनानका पर्वत सिला महल वावड़ी सरोवर नदी सोभे है । चार चार अंगुल हरयाली दूव पन्ना साढस्य महा सुगंध कोमल मीठी सोभे है । मानों श्रावन भादोंकी हरयाली साहस्य है । अथवा आनंदके अंकूरा ही हैं । कहीं जिनगुन गावे हैं कहीं नृत्य करे हैं । कहीं राम अलाप जिनस्तुति करे हैं। कहीं देव द्रव्यकी चरचा करे है कहीं ध्यान करें कहीं मध्य लोकके 'धर्मात्मा पुरुष वा स्त्रीका गुनाकी बड़ाई करे ऐसे जिन मंदिरमें
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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