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________________ २०४ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । -~~ ~ ~ ~uan ~~wnwww अमृतके कुंडमें स्नान कर अनोपम वस्त्र आभूषन पहिर अन्य अमृतके कुण्डमें रतनमई जारी भर और उत्कृष्ट देवों पुनीत अष्ट द्रव्यकू हस्त जुगलमें धार मन वचन कायकी शुद्धता कर महाअनुराग संयुक्त महाआडंबरसू निनपूननकू पहली चालो पीछे और कार्य करो जासू पहिले निनपूजन कर पाछे अपनी संपदाकू सम्हार अपने आधीन करो सो अपने निन कुटुम्बका उपदेश पाय वा पूर्वली धर्मवासना सों स्व इच्छासू उठ महा उछाहसों जिन पूजनकू जिनमंदिर विर्षे जाता हुआ सो कैसा है जिनमंदिर अरु निनबिम्ब सोई कहिये है । सौ जोननं लांबा पचास जोजन चौड़ा अरु पचहतर जोनन ऊंचा ऐसा उतंग निनमंदिर अद्भुत सोभे है । ताके अभ्यंतर एक सो आठ गर्भग्रह हैं । एक एक गर्भग्रहमें तीन कटनी ऊपर गंधकुटी निर्मापित है तामें एक एक जुदे जुदे श्रीनी पांचसै धनुष प्रमान उतंग पद्मासन सिंहासन ऊपर विराजमान हैं बहुरि वेदी ऊपर वना अष्ट' मंगल द्रव्य धर्म चक्र आदि अनेक अचरजकारी वस्तुके समूह पाइये है । ऐसी गंधकुटीमें श्रीनी अद्भुत सोभा सहित विराजे हैं। एक एक गर्भग्रह विर्षे एक एक सास्वते अनादि निधन अक्रतम निनबिम्ब स्थित हैं सो कैसे हैं जिनबिम्ब समचतुरसंस्थान है। अरु कोट सूर्यकी जोतिने मात करता तिष्टे हैं गुलाबके फूल सारखे महामनोज्ञ हैं । शान्त मूर्ति ध्यान अवस्थाकू घरे नासा दृष्टिकू धारे परम वीतराग मुद्रा आनन्दमय अति सोभे है। सो कैसे हैं जिन विम्ब ताया सोना सारखी रक्त, जिव्हा वा होंठ वा हथेली वा पगतली हैं। फटक मन सारखे दांतोंकी पंकति वा हस्त
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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