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________________ २०२ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । wwwwwwwwwwwwwwww जय प्रभू थे जयवंत प्रवर्ती नंदो वृद्धो आजकी घड़ी धन्य जामें उत्पन्न भये हम ऐते दिन अनाथ रहे सो अब सनाथ भया अरु अब मैं तुम्हारा दर्सन कर हत कृत्य भया पवित्र भया सो हे प्रभू संपदा तुम्हारी अरू यह राज तुम्हारा अरू यह विमान तुम्हारे अरु ये देवां नानके समूह तुमारे अ.ये हाती घोड़ा तुम्हारे अरु विद्या नाटशाला आभूषन सुगंध माला ये मर छत्र ये वस्त्र रतनादि सर्व तुम्हारा ऐ सात जातिको सेन्या वा गुनं चास जातकी सेना ये रतननके मंदिर ये दस जातके देव ये गिलमई विछाई रतनानके भंडार तुमारा है । हे प्रभू हे नाथ हम तुमारा दास हैं। सो म्हां ऊ र आज्ञा कीजे सोई हमने प्रमान है । हे प्रभू हे नाथ दयामूर्ति हे स्वामिन कल्यान पुन तुमने पूर्वे कौन पुन्य किया था अरु कौन शील पाल्या कौन सुपात्रनें दान दिया कौन पूजन किया कौन सामायिक वा प्रोषध उपवास किया कौन षट् कायकी दया पाली कौन सरधानका ठीक किया अरु कौन अनुव्रत वा महाव्रत पाल्या कैसा सास्त्र अभ्यास किया के एकाविहारी होय ध्यान किया के तीर्थ जात्रामें गमन किया के वनोवास हो तपश्चरन किया वा वाईस परीसह सही वा जिन गुनमें अनुरक्त भया के जिनवानीका माथा ऊपर सरधा राखी इत्य दि जिन प्रनीत जिन धर्म ताके बहुरि अंग आचरन किये वाके प्रसाद कर तुम हमारे नाथ अवतरे सो हे प्रभू ये स्वर्ग स्थान है अरु हम देव देवांगना हैं। तुम पुग्यके फल कर मनुष्य लोकसू जिन धर्मके प्रभाव कर पर्याय पाई है। जामें संदेह मत करो सो अब हये काई कहां आपही अवधि ज्ञान कर सारो वृतान्त जानोगे धन्य आपकी बुद्धि
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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