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________________ - - ज्ञानानन्द श्रावकाचार। कायकी पीर हरी तुमही भवसमुद्रमें पड़ते प्रानीनको आधार हो और कोई त्रैकालमें नाहीं। आवागमन सों रहित करवाने तुमही समर्थ हो । मोह पर्वतके फोड़वाने तुम वजायुध हो घातिया कर्मनका चूर करवाने तुम अनन्त बली हो अहो भगवान तुम दोऊ हाथ लांबा किया अरु भव्य नीवाने संसार समुद्रमाहींसू काढ़िवाने हस्तालंवन दिया है। बहुरि हे परमेश्वर हे पर्मजोति हे चिद्रूपमूर्ति अनन्त चतुष्टयकर मंडित अनन्त गुनाकर पूरित तुमारी कैसी वीतराग मूरत आनन्दमय आनन्द रसकर अहलादित महामनोग अद्वैत अकृत अनादि निधन त्रिलोकपूज्य कैसी सोहे ताका अवलोकन कर मन वा नेत्र सीघ्र होय हैं। बहुरि हे केवलज्ञान सून षट द्रव्य नव पदार्थ पंचास्तिकाय सप्त तत्व चौदह गुनस्थान चौदह मार्गना वीस प्ररूपना चौवीस ठाना ग्यारा प्रतिमा बारा वृत दप लक्षनीक धर्म षोडस भावना बारा अनुपेक्षा चार भावना अठाईस मूल गुन चौरासी लाख उत्तर गुन तीनसै छत्तीस मतिज्ञानके भेद अठारा हजार सीलके भेद साढ़ा सेतीस हजार प्रमादके भेद अरहन्त के छयालीस गुन आचार्यके छत्तीस गुन उपाध्यायके पच्चीस गुन साधुके अट्ठाईस गुन श्रावकके एकवीस गुन समुकितके आठ अंग तिनके पच्चीस दोष मुनि आहारके छयालीस दोष तिनमें बत्तीस अंतराय चौदह मलदोष नोधा भक्ति दातारके सप्त गुन चार प्रकार आहार चार प्रकार दान तीन प्रकार पात्र एकसो अड़तालीस कर्मप्रकृति बंध उदय सत्ता उदीरना अरु आश्रवका सत्तावन भेद अरु त्रेपन क्रिया इनके घट त्रिभंगी सो पाप प्रकृति अड़सट पुन्य प्रकृति संतालीस अघातिया प्रकृति एकसो एक घातिया प्रकृति
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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