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________________ १५४ ज्ञानानन्द श्रावकाचार। मोक्ष मार्ग है। अरु मोक्षरूपी भी सम्यक चारित्र मोक्ष मार्ग है । मोक्षरूपी नाहीं । तातै सिद्धाके नहीं कह्या है । अरु सयोग अयोग केवलीके चारित्र कहया है । सो ही उपचार मात्र कहा है । चारित्र नाम सावध योगके त्यागका है । वीतराग भावाने कारन है । वीतराग भाव कार्य ही कारजकी सिद्ध हुआ पाछे कारन रहित नाहीं । तातें ज्ञानकी छयोपसम अवस्था वारवां गुनस्थान ही है। ताही ते ही हेय उपादेयका विचार है । तब ही हेय उपादेयका विचार संभवे केवली रुत हुआ कारज करनो छो सो करि चुक्या । तासों वाके सावद्ययोगका त्याग संभवे नाहीं । ऐसा मोक्ष मार्ग धर्म ताही के प्रसाद कर जीव परम सुखी होय है । ऐसे अधर्मको छुड़ाय धर्म भी सन्मुख कीया । बहुरि यह जीव सम्यकज्ञानको सुलभ माने है । ताको दुर्लभ भावनाका स्वरूप दिखाय सम्यकज्ञान विर्षे सन्मुख किया सो कहिये है । प्रथम तो सर्व जीवाका घर अनादि ते नित्य निगोद है । तिन मांहीसू निकरना महा दुर्लभ है। उहांसे निकलनेका कोई प्रकार उपाव नाहीं। जीव हीन सक्त भया है आत्मा जाका सो सक्तहीन जीव मूं कैसे निसर्नेका उपाय आवे । एक अक्षरके अनन्तमें भाग ज्ञानका क्षयोपसम रहा है। अरु अनेक पाप प्रकृति समूहका उदय पाइये है । अरु वहां सो छे महीना आठ समयोंमें छेसौ आठ जीव निकरे हैं। ता उपरांत अधिक हीन मीसरे ही अनादिकालके ऐसे निकर व्यवहार राशि विषं आवें हैं। उतना ही विवहार राशिमें सौ मोक्ष जाय हैं। सो यह काल लब्धि महात्म.
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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