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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार। अनुपेक्षा नाम वार वार घोषनेका है। आमनाय नाम कालके कल्प परनेका है। जी काल ज्यों पड़नेका होय सो पढ़े । धर्मोपदेश नाम परमार्थ धर्मोपदेश देनेका है । आगे सप्त तत्व ऐ आदिका स्वरूप कहिये । सो चेतना लक्षनो जीव जामे चेतनपनो होय ताको जीव, कहिये । तामे चेतनपनो नाहीं ताको अजीव कहिये। तारें चेतनपनो रहित कर्म आवनेको कारन ताको आश्रव कहिये । द्रव्य भावकर दोय प्रकार है। सो द्रव्य आश्रव तो धर्मकी सक्ति जो अनुभाग ताको कहिये। तथा भावाश्रव मथ्याते । अविरत । कषाय । जोगें। ये संतावन आश्रवको कहिये । सो यहां चार जातके जीवका भाव लेना बहुरि द्रव्य आश्रव भाव सरवका अभाव होना ताको संवर कहिये । पूर्वे द्रव्य कर्म व सत्ता विषे वंधर्थ तिनकी संवर पूर्वक एकी देस निर्जराका होना ताकों निर्जरा कहिये । वहुरि जीवके रागादिक भावनके निमित्त कारण कर्मकी वर्गना आत्मके प्रदेस विषे वधे ताको वंध कहिये। वहुरि द्रव्य कर्मका उदैका अभाव होना । अरु साताका भी अभाव होना। आपका अनंत चतुष्टय स्वभाव प्रगट होना याको मोक्ष कहिये । मोक्ष नाम द्रव्य कर्म वा भाव कर्म संयुक्त होनेका वा रहित होनेका वा निर्वध होनेका वा निवृत्त होनेका है। सिद्धक्षेत्रके विषे जाय तिष्टे है आगे धर्मद्रव्यका अभाव है । तातें धर्मद्रव्यके सहकाकी विना आगे गमन करवेकी सामर्थ नाहीं । तात वाही स्थित भये उस क्षेत्रमें अरु इस क्षेत्रमें भेद नाहीं। वह क्षेत्र ही सुखका स्थानक होइ तो उस क्षेत्र विर्षे सर्व सिद्धोंनकी अवगाहना विर्षे पाचों जातके स्थावर सूक्ष्म वादर अनन्ते तिष्टें हैं । ते तो महा अज्ञानी एक अक्षरके अनन्तवें भाग
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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