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________________ ११६ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । otoपी मोलके लिये चाकर साद्रश्य ताकौ भी मानै । अरु श्रावक देवादिक मानै तातें सर्वपंथी कहिये है। ऐसे याका अर्थ जानता सो तेरापंथी तौ अनादि निधन जिनभाषित शास्त्रके अनुस्वार चले आऐ है । अरु जेते कुमत चालै है सो रिखभनाथ तीर्थकी आदतें अब पर्यंत त्यों त्यों तेरापंथीकी पांत वारे निसरते गये। अरु आनमतमें परते गये तैसे दुग्ध घना ही चोखा था परंतु मदराके भाजनमें जाय परे सो वे दुग्ध अलनि कर गया । अब भले मनुष्य कैसे गृहन करें त्यों ही शुद्ध जैनी होय कुगुरू कुदेव कुधर्म सोई भये अलीन भाजन ताकों अंगीकार करे । ताकौ सत्पुरुष जैनी कैसे मानें जैनी तौ सोही है। जो जिनदेव सिवाय और किसहीने न मानें । ताकी लालन पालन नाहीं कर । जैसे शीलवंती स्त्री होय अपने कामदेव से भरतारकों छोड़ अि नीच कुलके उपजे भ्रष्ट पुरुष ताकौ लालन पालन नाहीं करै । अरु वाका लालपाल करै तौ शीलवंती काहेकी । हमारी मां अरु बांझ ऐसे कहता संभव नाहीं । ऐसा बचन कोई कहै है तौ बाकों बावला मतवाला जानिये स्याना नाहीं त्योंही जैनी होय । जिनदेवको भी सेवै है अरि कुदेवादिकको भी सेवै वाको भी भलौ जाने है । वे पुरुष स्त्री मदरा पीय बावरे कैसी चेष्टा करे है । तातें बावरेका बचन प्रमानीक नाहीं । तातें देव अरिहंत गुरू निग्रंथ धर्म जिन प्रनीत दयामई मानना उचित है । यही मोक्षमारग है अन्य मोक्षमारग नाहीं । केई अज्ञानी और प्रकार भी मोक्षमारग माने है सो वे कांई करे है सर्पका मुख थकी अमृत चाहै है । वा जल विलोय घृत काढया चाहे है। बालू
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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