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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । देखवाकर नवीन स्थानमें धर्म संयम आदरगी, वृद्धपनै सिथिल होसी । ऊंट ऊपर राजपुत्र देखवाकर यती परम्पर दोषी होसी। काला हस्तीका समूह लड़ता देखवाकर समय समय वर्षा थोरी होसी, मनमान्या मेघ न वरषसी । ऐ सोला स्वप्नाका अर्थ अशुभनै सूचता भद्रबाहु स्वामी निमित्तज्ञानकी बलसू राजा चन्द्रगुप्तनै याका अर्थ यथार्थ कह्या ताकर राजा भयभीत भया ऐसा स्वप्नाका फल सारा मुन्यां प्रसिद्ध जान्यों । ऐही सोला स्वप्ने चतुर्थ कालके आदि भरत चक्रवर्त्तिनै आये थे । सो वा भी याका फल श्री आदिनाथजीको पूछ्या । तब श्री भगवाननी दिव्यध्वनि विषै ऐसा उपदेशभया आगे पंचमकाल आवसी । ता विषै हुंडा सर्पनी काल देखकर अनेक तरहका विपर्ने होसी ता करि या भव विषै वा परिभव विषै जीवनै महा दुःखका कारण होसी । सोला स्वप्ना पंचमकालमें राजा चन्द्रगुप्तनै आए । अरि राजा चन्द्रगुप्त दीक्षा धरी तामें बारा फनका सर्प देखवां थकी बारा बरसको काल पड़ौ जान्यौ तब चौबीस हजार मुन्यौका संग छाड़ि यानै कही ई देशमें बारा बारा बरसको अकाल पडैलौ ये ठहरसी ते भ्रष्ट होसी, दक्षिणमें जासी ता मुनपद रहसी। अकालका अभाव होसी पीछे ऐसा उपदेश सुन भद्रबाहु स्वामी सहित बारा हजार मुन तौ दक्षिण दिशामें विहार किया । अब शेष बारा हजार मुनि इहां ही रहते अनुक्रम तै भ्रष्ट भये । पातर, डोली, पक्षेडी, लाठी राग्वते भये। ऐसे बारह बरस पूर्ण भये पीछे सुभिक्ष्य काल भया तब भद्रबाहु स्वामी तो परलोक विषै पधारे और दक्षिण दिशातें सर्व मुन आए याकी भ्रष्ट अवस्था देख निंद्या तब केता तौ प्रायश्चित्त दंड लै छेदो
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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