SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - ज्ञानानन्द श्रावकाचार । कपड़ा हुई स्त्री तीन दिन व प्रसूत हुई स्त्री डेढ़ महिना पर्यंत देहरा विषै जाय नाहीं । गुह्य अंग दिखावै नाहीं । खाट आदि बिछावै नाहीं। जोतिक वेदिक मंत्र मंत्र तंत्र न करै। जलक्रीड़ा आदि कोई प्रकार क्रीड़ा न करै । लूला, पागला, बिकल अंगी, अधिक अंगी, वा बन्या, अन्धा, बहिरा, गूंगा, काना, माजरा, सूद्र, वरणसंकर वर्ण पुरुष स्नान कर उजल कपड़ा पहिर श्री जिनको पखालादि अभिषेक कर अष्टद्रव्यसूं पूजा न करै अरु अपनै घरमूं विनयपूर्वक चोखाद्रव्य ल्याय कपड़ा पहिर श्री जिनके सन्मुख होय आगे धरि देय, पीछे नाना प्रकारकी स्तुति करि पाठ पठन नमस्कारादि करि उठ जाय ऐसी द्रव्यपूजा वा स्तुति पूजा करै । राते पूजा न करें। मंदिर{ चारों तरफ गृहस्थका हवेली घर ना होय । सो सर्वत्र मलमूत्र आदि अशुच वस्तु रहित पवित्र होय अनछान्या जल करि जिनमंदिरका काम करावै नाहीं । और जिन पूजन आदि सर्व धर्मकार्य विषै बहुत त्रस थावर जीवोंका घात होय सो सर्व कार्य तजनै योग्य है । ऐसे चौरासी आसादनाका भेद जानना । भावार्थ-जिन मंदिर विषै सर्व सावध योग लिया जो कार्य होय सर्व तजना । और स्थानक विषै पाप किया ताके निरवृत्य करनैकुं जिनमंदिर करिये है । अरु जिनमंदिर विष उपाया पाप ताके उपसांत करवाने और कोई समर्थ नाहीं भुगत्यां छूट है। जैसे कोई पुरुष किसी जनसूं लरे ताकी तकसीर राजा पास माफ करावै । और राजा सूं भी लड़ा ताकी तकसीर माफ करवाने ठिकाना, वाको फल बंदीखाना ही है । ऐसा जान निज हितमान जिहि तिहि प्रकार विनयरूप रहना । विनय गुन है सोधर्मका मूल
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy