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________________ . ७० : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : मीले उसीको स्वर्ग कहते हैं। उनके इस जवाब से संतोष नहीं होने से राजाने अनिकापुत्र आचार्य को बुलाकर स्वर्ग का स्वरूप पूछा। गुरुने उत्तर दिया कि-देवतागण अखंड यौवनवाले, जरा रहित, निरुपम सुखवाले तथा सर्व अलंकारों को धारण करनेवाले होते हैं। पहले देवलोक में ३२ लाख विमान हैं, दूसरे में २८ लाख आदि स्वर्ग का यथार्थ स्वरूप बतलाया। यह सुनकर राणीने श्रद्धापूर्वक पूछा कि-हे गुरु ! वह स्वर्ग का सुख किस प्रकार मिल सकता है ? गुरुने उत्तर दिया कि-श्रावकधर्म अथवा साधुधर्म का उत्तमरीति से सेवन करने पर स्वर्ग का सुख प्राप्त हो सकता है। यह सुन कर प्रतिबोध पाई हुए रानीने पुष्पचूल राजा से कहा कि-हे नाथ ! मुझे चारित्र लेने की आज्ञा प्रदान कीजिये । इस पर राजाने कहा कि-हे प्रिया! तेरा वियोग मैं एक क्षण भर के लिये भी सहन नहीं कर सकता हूँ। तिस पर भी राणीने आग्रह किया तो राजाने कहा कि-हे प्रिया ! यदि तू सदैव यहीं रहनेका और मेरे घर से ही आहार ग्रहण करना स्वीकार करे तो मैं चारित्र लेने की स्वीकृति + । इसको राणीने स्वीकार किया और राजाने बड़े उत्सवपूर्वक अनिकापुत्र आचार्य के पास राणी को दीक्षा दिलाई ! कुछ समय बाद आचार्यने श्रुतज्ञान के उपयोग से दुष्काल
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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