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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : स्वामी हैं उसमें शक ही क्या है ? उसके तो आप ही स्वामी है । अन्तःपुर में उत्पन्न होनेवाले रत्नों की तो आप जो कुछ योजना करें वह हम सब को मान्य है। इस प्रकार कपट वचनोंद्वारा उन सब की सम्मति लेकर राजाने निषेध करने पर भी दोनों के परस्पर लग्न कर दिये । इससे पुष्पवती राणी को वैराग्य हो मया और कठीन तपस्या करने लगी जिसके फलस्वरूप वह स्वर्गलोक में देवता हुई। ___कुछ समय बाद पुष्पकेतु राजा को मृत्यु प्राप्त हुई और पुष्पचूल राजा बना । वह पुष्पचूला के साथ विषयसुख भोगता हुआ समय व्यतीत करने लगा। अहो ! इस संसार में कामांध पुरुष कार्या-कार्य का विचार भी नहीं कर सकता। पुष्पवती रानी का जीव जो देव हो गया था उसने अवधिज्ञानद्वारा पुत्र-पुत्री का अकार्य देख कर पूर्वभव की वशीभूत होकर पुष्पचूला को स्वम में महाभय उत्पन्न करनेवाला नरक दिखाया । उसको देखकर भय से भयभीत हुए पुष्पचूलाने जागृत होकर स्वप्न का सर्वे वृत्तान्त अपने पति से कहा। राजाने प्रातःकाल होते ही बौद्ध आदि सर्व दर्शनियों को बुलाकर उनसे प्रश्न किया कि नरक कैसे होते है ? उसके उत्तर में किसीने गर्भवास को नरक बतलाया, किसीने कैदरवाने को, किसीने दारिद्र को, और किसीने परतंत्रपन को नरक कहा । उन सब के मतों को सुन कर रानीने कहा कि-ये तो नरक नहीं कहलाती । इस पर