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________________ व्याख्यान ५: : ६१ : स्वम आया जिस में वह उसके घर का पानी पी गया। फिर अनुक्रम से सरोवर, कुआ, नदी तथा अन्त में सर्व समुद्रों का पानी पी गया तिस पर भी उसकी तृषा शान्त नहीं हुई । फिर एक पुराने कुए में जो थोड़ासा पानी था उसको निकालने के लिये उसने घास का पूला डोरी से बांध कर कुए में डाला और उस पूले को बाहर निकाल कर उसमें से टिपकते हुए जलबिन्दुओं को जीभ द्वारा चाटने लगा । समुद्र के जल से भी जिसकी तृषा शान्त नहीं हुई उसकी तृषा इस पूले में से झरते हुए जलकण से किस प्रकार नष्ट हो सकती है ? इस दृष्टान्त का यह तात्पर्य है कि-स्वर्गादिक के अनेकों सुख भोग बाद भी जिसको तृप्ति नही हुई उसको अल्प आयुषवाले मनुष्य देह के अल्प सुख से तृप्ति किस प्रकार हो सकती है ? जराद्वारा जर्जरित अंग होने पर भी वह विषयसुख से तृप्त नहीं होता । इस प्रकार की हमारी वैराग्यमयी वाणी सुनकर उदायन राजा को प्रतिबोध होने से उसने तुरंत ही दीक्षा ग्रहण करली । इस चोवीशी में यह आखरी राजर्षि है । अब इस के बाद कोई भी राजा दीक्षा नहीं लेगा। यह राजर्षि इस भव में ही सर्व कर्मों का क्षय कर मोक्षपद प्राप्त करेगा। इस प्रकार के वृत्तान्त को सुनकर अभयकुमारने अपने
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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