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________________ व्याख्यान ५ : .. ... : ५९ : कर तू यहां किस प्रकार आया ? कुमारने उत्तर दिया किउसको और उसकी माता को यहीं समीपवृति उद्यान में ही ठहरा कर मैं आया हुँ । यह सुनकर राजा उस कुमार के साथ उद्यान में गया और उसकी प्रिया सुनन्दा से मिला। राजाने सुनन्दा से पूछा कि-उस समय जो तुझे गर्भ था वह पुत्र कहां है ? सुनन्दाने उत्तर दिया कि-हे प्राणनाथ ! यह जो आप के साथ आया हैं वह ही यह पुत्र है। यह सुनकर राजाने कुमार से कहा कि-हे वत्स! तू मेरे सामने झूठ क्यों बोले ? उसने उत्तर दिया कि-मैं निरन्तर मेरी माता के हृदय में रहता हूँ इस से मैने वह उत्तर दिया था। यह सुनकर राजाने हर्षित होकर कुमार को अपनी गोद में बिठाया । तत्पश्चात् राजाने अति आनन्दपूर्वक ध्वज तोरण से शंगारित राजगृह नगर में सुनंदा का प्रवेश कराया और अभयकुमार को चार सो नवाणु मंत्रियों में प्रधान मंत्री का पद प्रदान किया। बाद में बुद्धिशाली अभयकुमार की सहायता से श्रेणिक राजाने अनेकों देशों को विजय किये (अपने आधीन किये)। एक बार श्रीमहावीरस्वामीने राजगृह नगर के उपवन में समवसरण किया जिनको वन्दना करने के लिये अभयकुमार गया। वहां अनेकों देव, देवी, साधु, साध्वी आदि से व्याप्त भगवान की पर्षदा में एक कुश गात्रवाले
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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