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________________ व्याख्यान ५९ : : ५४१ : कोकाश से उसका नाम आदि पूछा। कोकाशने उत्तर दिया कि-हे स्वामी ! यह लंका नगरी है। यहां पहिले रावण नामक राजा हो गया है । उसकी समृद्धि का वर्णन लोक में (लोकिक शास्त्रों में) ऐसा सुना जाता है कि-उस रावणने नव ग्रहों अपने पलंग के साथ बांधे थे, यमराज को बांध कर पाताल में डाल दिया था, वासुदेव उसके घर कचरा बहुरा निकालता था, चारों मेघ उसके घर पर गंधयुक्त जल की वृष्टि करते थे, यमराज अपने पाड़े पर जल भर कर लाता था, सातों मातृका देवियें उसकी आरती उतारती थी, शेषनाग उसके मस्तक पर छत्र धारण करता था, सरस्वती उसके पास वीणा बजाती थी, रंभा नामक अप्सरा नृत्य करती थी, तुंबरु (देव) गंधर्व गायन करता था, नारद दूतपन करता था तथा ताल बजाता था, सूर्य रसोई बनाता था, चन्द्र अमृत वृष्टि करता था, मंगल (ग्रह) भैंसे दूहता था, बुध आरसी (काच) दिखाता था, गुरु (बृहस्पति) घंटा बजाता था, शुक्र (शुक्राचार्य) उसका मंत्री था, शनि उसके पृष्ठ भाग का रक्षक था, अठयासी हजार ऋषिगण पानी के परब की रक्षा करते थे, विष्णु उसके पास मसाल लेकर खड़ा रहता था और ब्रह्मा उसके पुरोहित थे। ऐसा समृद्धिवाला होने पर भी परस्त्री का हरण करने से वह रावण दुःखी हुआ । इस प्रकार बाते करते हुए वे वापस लौट कर अपने नगर को आये ।
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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