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________________ ::५२४ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : होने से जीव को तवश्रद्धा होती है वह पांचवा क्षायिक समकित है। . ___ यह समकित गुण से तीन प्रकार का भी है-रोचक, दीपक और कारक । इन में से सिद्धान्त के विषय में कहे हुए तच्चों उपर हेतु तथा उदाहरण बिना जो दृढ़ आस्था हो, वह रोचक समकित कहलाता है । इस समकित पर निम्नस्थ कृष्ण अर्धचक्री का प्रबन्ध प्रसिद्ध है कृष्ण वासुदेव का प्रबन्ध द्वारका नगरी में एक बार वर्षाऋतु में श्रीनेमिनाथ भगवंत समवसर्या । उनको वन्दना कर श्रीकृष्णने पूछा किहे स्वामी ! मुनि वर्षाऋतु में विहार क्यों नहीं करते ? प्रभुने उत्तर दिया कि-हे कृष्ण ! वर्षाऋतु में पृथ्वी अनेकों जीवों से व्याप्त होती है, अतः उस समय विहार करने से उन जीवों का रक्षण नहीं हो सकता इस लिये मुनि विहार नहीं करते हैं । यह सुन कर कृष्ण ने भी चार मास तक अंतःपुर में रहने का निश्चय किया क्योंकि राजसभा में जाने से अनेकों सभासदों को आना पड़े जिससे घोड़ागाड़ि आदि के आनेजाने से अनेकों जीवों का मर्दन हो। उस नगरी में एक वीरक नामक सालवी रहता था जो कृष्ण का भक्त था । उसको कृष्ण का दर्शन कर भोजन करने का नियम था । अतः जब कृष्ण चार महिने तक,
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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