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________________ व्याख्यान ५८ वां समकित के कई अन्य प्रकार सम्यक्त्वं चैकधा जीवे, तत्त्वश्रद्धानतो भवेत् । निश्चयव्यवहाराभ्यां, दर्शनं द्विविधं मतम् ॥१॥ भावार्थ:--तत्त्व श्रद्धानरूप जीव के लिये एक प्रकार का समकित और निश्चय तथा व्यवहारद्वारा समकित दो प्रकार का माना गया है । पिछले व्याख्यानों में बताये हुए समकित के ६७ भेदों में से ६१ भेद व्यवहार समकित के अन्तर्गत आते है और अन्तिम छ भेद निश्चय समकित के अन्तर्गत आते हैं । समकित पांच प्रकार का हैआदावौपशामिकं च, सास्वादनमथापरम् । क्षायोपशमिकं वेद्यं, क्षायिकं चेति पञ्चधा ॥१॥ भावार्थ:--प्रथम औपशमिक, दूसरा सास्वादन, तीसरा क्षायोपशमिक, चोथा वेद्य (वेदक) और पांचवा शायिक । इस प्रकार पांच तरह का समकित है । १ औपशमिक समकित-जिसकी कर्मग्रंथी भेदी हुई है (ग्रंथीभेद किया हुआ है) ऐसे शरीर (मनुष्य) को सम्य
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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